जावो निरमोहियो! जाणी तेरी प्रीत
लगन लगी जदि प्रीत और ही, अब कुछ और ही रीति
इमरत पाइ कै विस क्यूं दीजै, कूण गांव की रीत
मीरां के प्रभु हरि अविनासी, अपणी गरज के मीत