सुण रे भँवर सैलाणी, बात मेरी सुण रे भँवर सैलाणी॥टेर॥

और तो बातें बहुत सुनी तैं, इधर उधर की कहाणी।

अब मेरी बात सुनो रे मेरे भँवरा, कहूं साची सैनाणी॥

काची कळी को रस क्या पीवे, पीवत जाय कुमलाणी।

जब रस खूटे तब दुःख पावे, मन ही मन में गिलानी॥

एक कली तोहे ऐसी बताऊँ, हरदम रस टपकाणी।

उस रस से सब जगत रच्यो है, पी जीवे सब प्राणी॥

वह रस पीवे सकल दुःख छूटे, खुद मस्ती छिकजानी।

जगत विषय रस मिथ्या लागे, जीवित मोक्ष दिखाणी॥

मानसिंह कहे कहूँ मैं कब तक, माने जगत दीवानी।

जन्मो जन्म जहर फल खावे स्वाद अमी नीं पिछाणी॥

स्रोत
  • पोथी : मान पद्य संग्रह ,
  • सिरजक : राजा मानसिंह ,
  • संपादक : रामगोपाल मोहता ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : 6
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