कोट गऊ जे तीरथ दानों।
पांच लाख तुरंगम दानों।
कण कंचन पाट पटंवर दानों।
गज गेंवर हस्ती अति बल दानों।
करण दधीच सिंवर बलराजा,
श्रीराम ज्यों बहुत करै आचारूं।
जां जां बाद विवादी अति अहंकारी
लवद सवादी,
कृष्णचरित बिन नाहिं उतरिया पारूं॥
यदि कोई तीर्थ तट पर एक करोड गायों का दान करता है। पांच लाख घोड़ों का दान करता है। अन्न (कण) स्वर्ण और रेशम से बुने पीताम्बरो का दान करता है। गज-गयंद तथा अत्यंत बलिष्ठ हाथियों का दान करता है। महादानी कर्ण, महर्षि दधीचि राजा शिवि और राजा बलि तथा श्रीराम की भाति कोई बहुत से आचारों का पालन करता है किंतु इतना सब कुछ करने पर भी यदि व्यक्ति वाद-विवादी हैं, अत्यधिक अभिमानी है और केवल सांसारिक पदार्थों का लब्ध-स्वादी है- विषयासक्त है तो वह बिना भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा के भवसागर से पार नहीं उतर सकता। अर्थात् उसका भगवान ही तार सकते हैं अन्यथा उद्धार मुश्किल है।