बल बल भणत व्यासूं।
नाना अगम न आसूं।
नाना उदक उदासूं।
बलबल भई निरासूं।
गलमें पड़ी परासूं।
जां जां गुरु न चीन्हों।
तइया सींच्या न मूलूं।
कोई कोई बोलत थूलूं॥
व्यास लोग बार-बार वेद शास्त्रो का प्रवचन करते हैं कितु उनकी वेद-शास्त्रों में वास्तविक आस्था नहीं है। परतु वे दान लेने में किंचित भी उदासीन नहीं हैं। उन्हें बार-बार अनेक प्रकार से निराशा होती है। उनके गले में मोह-माया की पाश पडी हुई है।
जिन्होंने गुर परमात्मा को नहीं पहचाना। और जिसने जगत के मूल (कारण परमेश्वर को नहीं सींचा-अराधा, वे धर्महीन 'थूळ' है कुछ का कुछ बोलते रहते हैं।