हिंदू तुरक सुणौ रे भाई, काहूं से मति होहु दुखदाई।

बीजा होइ उधारा देणा, किया काढ़ैं जाई॥

मारहि जीव सोच बिन सौदा, मनमुखि मास गरासै।

लेखा लियूं लखौगे प्राणी, यहु टलैगी हांसै॥

पग की पीड़ असम करि उन्हा, दुख उपरि सुलगाया।

संत पुकार सुणी सांई ने, हजरत दांत तुड़ाया॥

जौ की रोटी भाजी सेती, मुहमद उमर गुजारी।

आगैं ज्वाब जबह का मांगै, यूं करि फिर धनधारी॥

रिखि रहते जंगलि जाइ बैठे, कड़े कड़े फल खाये।

जटा अगनि जुगती सौं टाली, जीवन जगति सताये॥

हुये हमालि औलिया साधू, बेअजार सुखदाई।

जन रज्जब उनकी छाया मैं, मिहरि दया तिनि आई॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम