दोख निज दीह दीसै रे, रसा अवरां पर रीसै रे।

बात निज हाथ बिगाड़ी रे, आई सोई पांत अगाड़ी रे॥

पाणीं नह पाऊं रे प्यारा, सैनांणी सरीर।

कांणी कहै चितारा कोझी, तैं आंणी तसबीर॥

कह्यो बुलाय कांचळी करजी, चित सूं मरजी चाढ।

गात निहारि त्रिया कृस गरजी, दरजी ऊपर दाढ॥

हंसक पाव हंसगत हसहस, असंक वृथा उदंत।

बांझ नारि कुळ-लीक विधुंसक, कहत नपुसंक कंत॥

बाजी पर साजी चट बैठे, व्है राजी बिन होस।

पड़ै सवार आप खुद पाजी, दै ताजी सिर दोस॥

तुरत निहार मूझ तन त्रासै, नैणां नासै नींद।

स्वामी कहै सूंघि निज स्वासै, क्यूं वासै कोपींद॥

मोज गिणैं चढावै मूंडो, जोजन दूरो जाय।

खोज करै निकाळै खोड़ां, मांदो भोजन मांहि॥

फळ अंगूर देखि दृग फाटा, ताटा ऊंचा ताय।

पलटी लूंकी देय पळाटा, खाटा अै कुण खांय॥

चल रंगरेजा मैं नहिं चाहूं, भल नहिं सोभा भंग।

अलमित देखिर जळै अंगमें, रांड कसूंमल रंग॥

बोखो आय अभागै बैठै, रस पागै प्रिय रोळ।

मूरख रै लागै तन मिरचां, त्यागै तुरत तमोळ॥

माच क्रोध सटकै मुख मोड़ै, पटकै आच पसार।

पुण गुण नाच कुवाच प्रकासै, नटको काच निहार॥

कामी कूड़ प्रपंच घणा कर, झूड़ करै तन झेर।

साध्वी दिस धूड़ उडायर, फूड़ बतावै फेर॥

धाड़ो पाड़ण सघुणा वैणां, ताकि जलावै तांद।

सांथो देतां रात सरावै, चोर बुरावै चांद॥

रूठर कहै अतर नह रूड़ो, तूठ देऊं तार।

पूठ फिराय पीनसी जंपै, गांधी ऊठ गंवार॥

समझावै बहुधीत सयाणां, वाचक नींत विनीत।

संख सेत व्है रीत सदा री, पांडर पीत प्रतीत॥

विविधि बजंत्री बीण बजावै, सुघड़ झीण सुर सार।

बोळो कहै खीण व्है वंचक, हीण बजावण हार॥

वण साधू निज नाम विसारो, छळ धारो मद छाक।

नरक पधारो देय नगारो, तिरण कंदारो ताक॥

जारी करतां जाय जमारो, थिर विचारो थाक।

बुधि थांरी रो है बळिहारो, ऊमर खारो आक॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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