राम खंणावै रांमसर, लछमण बांधै पाल्य।

सिरि सोनै रो बेहड़ौ, सतवंती पण्यहार॥

राम खणायो रामसर, अगमे नीर अथाह।

सीता सरि आवै नहीं, कुल्य चालै काह॥

हाथि कटोरौ सिरि घड़ौ, सीता पांणी जाय।

मरवौ चंपो केवड़ौ, सींचै छै वंणराय॥

सोवन मिरघ सरोवरां, सती फिरंता दीठ।

इसड़ा मिरघ मारही, लखण कमावै झूठ॥

सोवन मिरघ सरोवरां, निरख्यौ नजरि नीहाल्य।

छाले घड़ौ ज्यौ बाहड़ी, आई मिरघौ भाल्य॥

हीर झलकै हिरण रै, चौकस रतन चियारि।

उरि उपरि ओपैं भलौ, कांचू दे करतार॥

कूड़ा लछमण धंणहड़, राम तुहारा बाण।

इसड़ा मिरघ मारहौ, कूड़ा करौ डफाण॥

सुण्य सीता लछमण कहै, सोवन मिरघ होय।

राम विछोहंण तम छळणें, दांनौ हंढै कोय॥

पेसौ कीयौ दाणवां, वंन खंड चोर बईठ।

सीता दरसण भोळवी, कोई आयौ दैत वसीठ॥

स्रोत
  • पोथी : मेहा गोदारा (भारतीय साहित्य के निर्माता) ,
  • सिरजक : मेहा गोदारा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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