आडा डूंगर वीझवंग, विच माछळा गयंद।

सीत कहै रे बंदरा, किणि विधि लोपिया समंद॥

सत सिवरयौ सीता तणौ, लछमण तणौ बाण।

श्री राम रो मूंदड़ौ, क्यौं रै भुजा रो पांण॥

सीता मंन्य आणंद हुवौ, कान्य सुंणी कुसळात।

कितरा सांवंत राम रै कितरौ राघव साथ॥

छेड़ा फिरै राजा राम रा, हुवै वन खंडा खेड़।

भाई सदा चितारयजै, भइयां भाजै भीड़॥

तेतीस कोड़ी देवता, अरि गंजण अरि मोड।

श्री राम रे साथ मां, बांदर छपन करोड़॥

धरती माता बाहरयौ, भार सहियौ जाय।

खबरि हुई सूं आयस्यै, घड़ी यो छट भाय॥

माहे जाळ मौरिया, रूते वूठा मेह।

साजन चूकि आविया, घणौ वूठो तेह॥

थापण्य मोसो जे कियौ, पर नारी सूं नेह।

पढ़ियां ने मेहो कहै, नीत नवला एह॥

हणवंत सारै वीनती, माता भूख मरांह।

बाड़ी दीसै बोह फळी, कहो तो वनफळ ल्यांह॥

सुंण्य हणवंत सीता कहै, पड़या वनफळ लेह।

म्हारौ कहियौ जे करै, लंक दिस पाव देह॥

रावण संवौ राजवी, लंका संवौ थांन।

कही पराई जो सुंणै, जां सिर नांही कांन॥

लंक उपाडू सूं जड़ा, सायर अंबा तांह।

मारूं रावण राजियौ, ले जूं देख तांहू॥

उंमति भंणीजै तीन्य जंण, हणवंत लछमण राम।

तीन्यौ आवै बाहरू, इण्य विध्य पाछी जांव॥

बंद्यौ छूटै देवता, रहें रावण राज।

सीत हड़ी किम जांणियै, राम रहै किम लाज॥

स्रोत
  • पोथी : मेहा गोदारा (भारतीय साहित्य के निर्माता) ,
  • सिरजक : मेहा गोदारा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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