छीलरियों मे कुण न्हावे, पड़्यो समदां सीर रे।
भूलने कुण जहर पीवे, मिली सुन्दर खीर रे॥टेर॥
ज्ञान गम रो ओढ्यो दुशालो, अब कौण ओढे चीर रे।
घर में धन और कौण मांगे, कौण बणे फकीर रे॥
पथर पाथर कौण पूजे, स्वतः हैं हम पीर रे।
आप अपना करे सब कुछ, क्या करे तकदीर रे॥
जगत तो मतिहीन हो गई, झूले दुःख रे तीर रे।
ज्ञान दियो गुरुदेव जी, जद टूट गई जंजीर रे॥
तोड़िया तकदीर म्हे तो, भया ज्ञान गम्भीर रे।
ज्ञान रो, दरियाव उलट्यो, समता शुद्ध समीर रे॥
हम गोपाल और गाय हम हैं, कौन बने अहीर रे।
अपनो पय हम आप पीयो, पीयत भया बेपीर रे॥
नाथजी रो साथ कीनो, मेटी झूठी लकीर रे।
मान लकीर ने सांप मान्यो, जिते न लगी तदबीर रे॥