बधिक बमेकी प्रान है, सति साध सिकारी।
ग्यान बान करि कंवल मैं, धुनि धनुहीं धारी॥
आखेट बृत्ति आतम लई, दिलि दया सु लोपी।
बप बसुधा नौखंड परि, बुधि बावरि रोपी॥
बैठै मूल सु मारनै, पारधि परि प्राना।
पंच पचीसौ मृगला, लाये लुकि बाना॥
अंगि अहेड़ी आकरे, उर अवनि चढ़ाई।
मारे स्यावज सोधि सब, कुलि करम कसाई॥
ऐसे दुष्ट सु ऊधरैं, तन मन गुन द्रोही।
जन रज्जब कहे राम जी सों पावै मोही॥