आई आंधी अकल की, अभिअंतर देसा।

बरणि बाड़ि सब उड़ि गई, लहिये नहीं लेसा॥

बृच्छ बड़ाई के पड़े, रज राजस उड़ी।

परकीरति पंखी मुये, खैमान सु खड़ी॥

कर्मक जोड़ा उड़ि गयो, बुधि बावरि आये।

छानि मानि सारी चली, भाये अनभाये॥

सुमति सरीर समूह तैं, पट पड़दे मांगे।

बादलि बिरह बिगासिये, नैनौं झर लागे॥

अनल अनलि सू ऊलटे, उर अवनि सु धाई।

रज्जब नेपै नांव की, आत्मा अधाई॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • संपादक : ब्रजलाल वर्मा ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम