घोर-घोर शंख बाजसी, तुरियां तंग तणेला।

आगम भाखै रांमदे, जुग चौथे में बरतेला॥

पिछम धरा सूं दळ ऊमटै, आलम आप आवेला।

धोळा नेजा फरहरै, गिरदां भांग छिपेला॥

गेहूं चिणा दळ में आवसी, गिणवां नाज बिकेला।

नीर नदियां रा मिट जावसी, जळ तो टांकियां तुलेला॥

पै'लां बड़ाबड़ बामणां, पाछे वाणियां नै पकड़ेला।

पाछै जुगत विहूणां जोगियां, ज्यांने जकड़ेला॥

ए’ड़ौ पवन बाजसी, परबत पाखांण उड़ेला।

रूई ज्यूं परबत जावसी, गिर मेर उड़ेला॥

सेंस किरण सूरज तापसी, धरणी तांबा वरणी व्हैला।

तेल कड़ावां ऊकळेला, इण विध नीर तपैला॥

लाखूं मण लोह गळेला, जिणरी चौडाळ घड़ेला।

हसती एरावत जुतसी, वासंग नेता बणेला॥

सवा लाख मण लोह गळेला, ज्यांरी घांणियां घड़ेला।

अनड़ जोधा इनवी जागसी, ज्यांरी तेल पड़ेला॥

पांच लाख दळ दिवला जुपसी, ज्यां में तेल भरेला।

दीप मशालां चांनणै, सायब तुरा टांकेला॥

दिल्ली डेरा देवसी, चित्तोड़ चंवरी रचेला।

धोळो घोड़ो हर रे हांसली, सायब मेघड़ी परणेला॥

हंस बुगला काळा व्हैला, कोयल कागा धोळा बणेला।

चारूं खूंट आलम फिरै, रिषिजन साख भरेला॥

निज धरमी संत साचा, हर री हाजरी भरेला।

आगम भाखै रांमदेव, जुग चौथे में व्हैला॥

स्रोत
  • पोथी : बाबै की वांणी ,
  • सिरजक : प्रो.(डॉ.) सोनाराम बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय
जुड़्योड़ा विसै