सिणगारी सन्नाह सूँ विसकामणि वरियाम।

वरि आई हाला वरण करण महा जुध काम॥

काम संग्राम ची हाम जुध कामणी।

घणा नर जोवती भोमि आई घणी॥

महाबळ धवळरा साहि वरमाळ तूँ।

सबळ घड़ कड़तळाँ घणा सन्नाह सूँ॥

युद्ध के महान कार्य करने वाले हे हाला(जसाजी) जिरह बख्तर से सुसज्जित( झाला रायसिंह की सेना रूपी) विष कन्या से, जो तुझसे विवाह करने आई है, ब्याह कर। युद्ध-कार्य की इच्छुक सेना-रूपी यह कामिनी अनेक वीरों को देखती हुई तेरी भूमि पर पहुँची है। हे हरध्रोल के महाबली पुत्र! झालाओं की जिरह बख्तर से बहुसज्जित सबल सेना-रूपी विष –कन्या की वरमाल को तू ग्रहण कर अर्थात् उसे हराकर विजय वैजयंती पहन।

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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