थोड़ा बोलौ घण सहौ नहचै जो नेठाह।
जो परवाड़ा आगलौ मित्रा करीजै नाह॥
नाह इसड़ा नराँ वात विगड़ै नहीं।
सोना री कसवटी खरी पूजै सही॥
घणा मझ घातियाँ भार झालै घणौ।
बहुत अबगुण कियाँ थोहड़ो बोलणौ॥