सिंघ सरस रायसिंघ रै रहियौ झूझै राम।
आड़ौ सरवहियौ अछै कलह तणौ घरि काम॥
काम संग्राम चौ राम नाँयह करै।
पड़ै गिरनारि जे पटू मोटा परै॥
अभंग छळि दाखि जस राखि जगि आपरौ।
रहै सथ कड़तळाँ सरस रायसिंघ रौ॥