सीहणि हेकौ सीह जणि छापरि मंडै आळि।

दूध बिटाळण कापुरस बौहळा जणै सियाळि॥

घणा सियाळि जे जणै जंबूक घणा।

तोहि नहँ पूजवै पाण केहरि तणा॥

धुणि खग ऊठियौ अभंग साम्हौ धणी।

सीह जसवंत जिसौ हेक जणि सीहणी॥

हे सिंहनी! एक सिंह को जन्म दे जो खुले मैदान में खेल खेलता है। दूध को भ्रष्ट करने वाले कायर तो सियारी बहुत पैदा करती है। सियारियाँ बहुत हैं जो बहुत गिदड़ों को जन्म देती हैं। तो भी वे सिंह के बल की बराबरी नहीं कर पाते है। तलवार को घुमाकर निर्भय पति सामने खड़े हुए है। हे सिंहनी! जसवंत जैसे एक ही सिंह को जन्म दे।

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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