पौढ्या सुख री सेज पै, ओढ़ स्यान्ति सोड़।

कनखी म्हांरी सपनै में, रहयौ पाड़ौसी तोड़॥

रहयौ पाड़ौसी तोड़ छोड़ रै छोड़ पुकारां।

मन में करयौ विचार, दुस्ट नैं चाल’र मारां॥

कह फूफा कविराय, फैंक चरखी नैं दौड़्या।

निदरा हुयगी भंग, पिलंग पर पाया पौढ़या॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : बुद्धिप्रकाश पारीक ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति)