संत शब्द न्यारे नहीं, राखो हृदय मांहि।

सत्य प्रमाणी भाव सूं, नांव नांव लग जाहि।

नांव नांव लगि जाहि, पाइये मुक्ति बसेरा।

निज तत परसै जाय, काल का पड़े घेरा।

आत्म सुमरण सुखलिया, दूजा दो जग जाहि।

संत शब्द न्यारे नहीं, राखो हृदय मांहि॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की वाणी सटिप्पणी ,
  • सिरजक : स्वामी आत्माराम ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम