सखी अमीणा कंत रौ औ इक बड़ौ सुभाव।
गळियारा ढीलौ फिरै हाकाँ वागाँ राव॥
वाजियाँ वीर-हक विहस लागै विढण।
विलम न धारै करताँर अपछर वरण॥
आवरत जसौ अरि घड़ा अध्रियामणौ।
ताइ हे सखी साभाव कंता तणौ॥