सखी अमीणा कंत रौ इक बड़ौ सुभाव।

गळियारा ढीलौ फिरै हाकाँ वागाँ राव॥

वाजियाँ वीर-हक विहस लागै विढण।

विलम धारै करताँर अपछर वरण॥

आवरत जसौ अरि घड़ा अध्रियामणौ।

ताइ हे सखी साभाव कंता तणौ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय