सादूळौ आपा समौ वियौ न कोय गिणंत्त।
हाक विडाणी किम सहै घण गाजियै मरंत॥
मरै घण गाजियै जिकौ सादूळ महि।
सत्राँ चा ढोल सिर सकै किम जसौ सहि॥
वयण घण साँभळै रहै किम वीसमौ।
सुपह सादूळ कुणि गिणै आपा समो॥
शार्दुल अपने समान किसी दुसरे को कुछ नही गिनता। वह दूसरों की हुँकार तो सहे ही क्या? घन गर्जन से ही मरता है। जो शार्दुल पृथ्वी के बद्दलों गड़गड़ाहट से ही मरता है, वह(जसाजी) शत्रुओं के ढोल को अपने सर पर बजता हुआ कैसे सह सकता है? वह विषम वीर घन-गर्जन को सुनकर कैसे रह सकता है? राजा शार्दुल अपने सामने किसे गिनता है?