रिमाँ माण मूकै नहीं वे रण गौ वढत्ताँह।
घण झूझौ रण भोम ही चढ़ियौ चाखड़ियाँह॥
चढ़ै रण चाखड़ी सामहौ चालियौ।
झूँझते भलौ रायसिंग तैं झालियौ॥
तास वरणागियै दीठि मन हतणौ।
मलफियौ सामहौ कळह बेढिमणौ॥