राम हमारे शाह जी, अवर राम के जन।

निशदिन हरि सुमिरण करे, करि करि निर्मल मन।

करि करि निर्मल मन, ताहि को सुमिरण कीजै।

रसना सूं ल्यो लाइ, शब्द मुख अमृत पीजै।

आतम सतगुरु सेव सूं, फिर नहि धारुं तन।

राम हमारे शाह जी, अवर राम के जन॥

स्रोत
  • पोथी : श्री महाराज हरिदासजी की वाणी सटिप्पणी ,
  • सिरजक : स्वामी आत्माराम ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम