रागी पागी पारख, नाड़ी वेद अरु न्याव।

इण विधि ज्ञान प्रकाश रे, किस विध सिख्यो जाय॥

किस विध सिख्यो जाय, ज्ञान पद कहत आवे।

कथणी सबे उपाय, ब्रहम माया कूं गावे॥

सुखराम समझ यूं ज्ञान की, उपजे नर उर मांय।

रागी पागी पारखु, नाड़ी वेद अरू न्याव॥1

स्रोत
  • पोथी : संत सुखरामदास ,
  • सिरजक : संत सुखरामदास ,
  • संपादक : डॉ. वीणा जाजड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै