बड़का बूढ़ा कैयग्या नहीं सांच नै आंच।

पण अब तो बात री, करणी पड़सी जांच॥

करणी पड़सी जांच, आयग्यो नयो जमाणूं।

झूठां रै घर मौज, सांचलो फिरै उबाणूं।

कहै श्याम कविराय, लोग जद मारै ठुड्डा।

आछी अक्कल सिखाय, मर गया बड़का बूढ़ा॥

मन रा मेळी वै मिळया, जाण री जोई बाट।

आड़ा-टेढ़ा चालता, ढावै आट रा पाट॥

ढावै आट रा पाट, पेट में राखै डाढ़ी।

मुळक मिलावै बात, मडां री किस्मत ठाडी।

कहै श्याम कवि साफ, धरो या ठाओ जेळी।

तळै रह्या जड़ काट, कहावै मन रा मेली॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर शर्मा ‘साक्षी’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थली राष्ट्र हिन्दी प्रचार समिति
जुड़्योड़ा विसै