मूँछाँ बाय फुरूकिया रसण झबूकै दंत।
सूतौ सैलाँ धौ करै हूँ बळिहारी कंत॥
कंत बळिहार लै मनाविय कामणी।
धरै मन धू-धड़ै साथि सकळा धणी॥
पाड़ि सत्र लोहडाँ धौ करै पोढियौ।
विमळ मूँछाँ मिळै फरूकै बावियौ॥