मतिवाळा धूमै नहीं नहँ घायल बरड़ाय।
बालि सखी ऊद्रंगड़ौ भड बापड़ा कहाय॥
बालि ऊद्रंगड़ौ बसै भड़ बापड़ा।
घाव अंग सहै नहँ विभाड़े अरि घड़ा॥
घणा जसवंत रा जोध विहसै घणा।
मांडिसी सही मतिवाळा वेढ़ीमणा॥
हे सखी! उस गाँव में आग लगा दे जहाँ मतवाले नहीं घूमते है, न घायल बर्राते हैं और जहाँ बहादुर बेचारे कहलाते हैं। उस गाँव में आग लगा दे जहाँ वीर दिन बन कर निवास करते हैं, जो अंग पर घाव नहीं सहते हैं, न शत्रु-सैन्य को नष्ट करते हैं। जसराज के वीर बहुत उमंगित हो रहे हैं। वे मतवाले, जोरावर, निश्चय ही युद्ध रचेंगे।