माल्हंतौ घरि आंगणै सखी सहेली ग्रामि।
जो जाणूँ पिय माल्हणौ जै मल्है संग्रामि॥
ग्रामि संग्रामि झूँझार माल्है गहड़।
अरि घड़ा खेसवै आप न खिसै अनड़॥
घाइ भांजै घड़ा खाग त्राछै घणौ।
मेर मांझी जसौ हेक रिण माल्हंणौ॥