लै ठाकुर वित आपणौ देतौ राजपूतांह।
धड़ धरती पग पागड़ै अंत्रावळि ग्रीझांह॥
ग्रहै अंत्रावळि उड़ि चली ग्रीझणी।
त्रिहूँ भुयण रही बात सोहड़ाँ तणी॥
ताइयाँ खाँति तरवारियाँ भाँत तह।
लड़ण कजि दियंतौ सुपह सुजि बीत लह॥