केहरि केस भमंग-मणि सरणाई सुहड़ाँह।

सती पयोदर क्रपण धन पड़सी हाथ मुवाँह॥

मूवाँहिज पड़ैसी हाथ भमंग-मणि।

गहड़ सरणांइयाँ ताहरै गैडसणि॥

काळ ऊभौ जसौ सकै नेड़ा करी।

कुणि सती पयोहर मूछ लै केहरी॥

सिंह के केस, सर्प की मणि, बहादुरों की शरणागत, सती के स्तन और क्रपण का धन उनके मरने पर ही हाथ लगते हैं। हे वाराह! सर्प की मणि और वीरों के आश्रित मरने पर ही तेरे हाथ आएँगे। जसराज रूपी काल खड़ा है। कौन उसके नजदीक जा सकता है? कौन सती के पयोधर और सिंह की मूँछ को ले सकता है?

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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