कळपतरू ऊखलि पड़ै जसौ महा धू जाम।
माळाँ गाळाँ ठाम महि तिकौ न सूझैं ताम॥
ताम सूझै न कौ ठाम धवळह तणा।
घणा अन राइयाँ रूँख राखै घणा॥
ब्रवै काय रँभ रथ जूथ जाण सुवर।
पड़ै कवि-पंखियाँ जसौ धू कळपतरू॥