हूँ बलिहारी साथियाँ, भाजै नहँ गइयाह।

छीणा मोती हार जिमि, पासै ही पड़ियाह।

पड़ै रिण पाखती छीणवै हार परि।

आवरत फेरि संघारि झूँझारि अरि।

हाथळै झेरवी कड़तळाँ हाथियाँ।

सहै झुझा थया बळि जसा रा साथियाँ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय