हेक पराया जव चरौ हालौ ऊगाँ सूर।

दाढाळा भूँडण भणै भागौ-भाखर दूर॥

दूरि दळ देख जसवंत थइयौ दई।

कोड़ लग पाखरयाँ कटक आयौ कई॥

हाक कुणि करै जसवंत सूँ हलचलौ।

उड़िया लोह अंबर अड़ै हेकलौ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय