ग्रीझणियाँ रतनाळियाँ सिर बैठी सुहड़ाँह।

चाँच वावै डरपती करड़ी निजर भड़ाह॥

भड़ाँ करड़ी निजर ग्रीझणी भाळियौ।

अरि घड़ा विढंता भलौ अहवाळियो॥

खळकियाँ श्रोण तांय बौह घट-खाळियाँ।

रिण भड़ाँ सीस यूँ बैठि रतनाळियाँ॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय