ग्रीझणियाँ रतनाळियाँ सिर बैठी सुहड़ाँह।
चाँच न वावै डरपती करड़ी निजर भड़ाह॥
भड़ाँ करड़ी निजर ग्रीझणी भाळियौ।
अरि घड़ा विढंता भलौ अहवाळियो॥
खळकियाँ श्रोण तांय बौह घट-खाळियाँ।
रिण भड़ाँ सीस यूँ बैठि रतनाळियाँ॥