करुं-करुं करै कुरझड़ी, युग सूं करै पुकार।
काची माया कारणै, सब भूलो संसार॥
सब भूलो संसार, देख माया आडम्बर।
जळ सूधी खिण जमीं, नीम ऊंडी देवै नर॥
ऊभा छांडि अवास, जाय जी रण कौ घर।
जीव हुवै जम हाथ, छार ऊपर लोटै खर॥
किरतार समर आळस म कर, रहै मौत सिर पर कड़ी।
केहर जगत सूं इम कहै, करै पुकारां कुरझड़ी॥1॥
कहै गगन चढ कांवळी, सांभळयो सह कोय।
जौ हर लाभै जीवियां, तो मानव देखो मोय॥
मानव देखो मोय, बरस एक सहस बदीता।
ज्यूं नर डसै भुयंग, रहै मुख रीता का रीता॥
ऐसे ही पाळी देह, कछु नह लाभ कमायौ।
जमीं भमी असमान, जीवति आमिख पायौ॥
अब अंतर बार अळगौ अनंत, ऐसे हीली आंमळी।
जगदीस भजौ जीवौ जितै, कहै गगन चढि कांवळी॥2॥
बागुळ सिर ऊंधी बड़ां, नीचो का निरखंत।
मो माया धर में रही, को खिण काढ लियंत॥
को खिण काढ लियंत, जिण आंटै धर जोऊं।
दिन काटूं इण दु:ख, सदा रात री न सोऊं॥
न खाधौ, न खरचियौ, मेलि धर मांहि लुकायौ।
मुख खाणौ, मुख विंट, जनम ऐसो फळ पायौ॥
पारकी होय पड़ियां पछै, खाज्यौ पिंड ऊभे खड़ां।
केहरी कहै देखो सहू, वागुळ सिर ऊंधी वड़ां॥3॥
हुं हुं हुं हुं कर रह्यौ सुण घूघू विय जाण।
हुं हुं करतां एक दिन, जासी छूट पराण॥
जासी छूट पराण, आव री म कर बडाई।
आठ सहस भख जीव, कहा सुभ कीध कमाई॥
निसा संताया जीव, मारि कै आमिख खायौ।
राजा नाम धराय, कहा गोविंद गुण गायौ॥
पाप री कीध सिर पोटळी, आव बडी निसचर थयौ।
केहरी कहै घूघू कुटिल, हुं हुं हुं हुं कर रह्यौ॥4॥
सारसड़ी सर छांडि कर, बोली चढि असमान।
कूड़ौ जीवण केहरी, मरणौ हक्क निदान॥
मरणौ हक्क निदान, नेट आ देह बिडाणी।
वीसल हंदी वीस कोड़, जळ मांहि बुडाणी॥
दुरजोधन जळ पेस, मरण दिन माण गमाणौ।
जळनिध खाई जकौ, रह्यौ नह रावण राणौ॥
जळ मांहि जीव जीवै नहीं, है दम जेतै गाय हरि।
केहरी गयण चढि यूं कहै, सारसड़ी सर छांड करि॥5॥
आड तरै छीलर महीं, सायर तर्यौ न जाय।
सायर में हंसा तरै, सो मोताहळ खाय॥
सो मोताहळ खाय, आड अधरम अहारा।
जैसे नर लोभ रा, करै आहार विपारा॥
परम हंस प्रम पुरख, कोई निरमळ होय ध्यावै।
सब त्यागै संसार, जकै मोताहळ खावै॥
केहरी कहै देखौ सकौ, कथा एह संकर कही।
कोई सूर हंस सायर तरै, आड तरै छीलर महीं॥6॥
पप्पीयौ पिउ पिउ करै, पिउ की नहीं पिछाण।
केहरि पिव कै कारणै, प्यारी तजै पराण॥
प्यारी तजै पराण, मुक्ख कहती नह डोलै।
सहोवर सब संसार, गुह्य अपणै पिउ खोलै॥
नगर नायका नार, फिरै होय सदा सोहागण।
धण माटियां निओत, अंत दिन जाय अभागण॥
मन सांच बिना किम हरि मिलै, युं ही अलीक कथ ऊचरै।
केहरि कहै मन में कपट, पापहीयौ पिउ पिउ करै॥7॥