करणी मां किरपा करो, माथै मेल्हो हाथ।
आठ पहर चौंसठ घड़ी, मायड़ दीज्यो साथ॥
मायड़ दीज्यो साथ, जाणज्यो बाळक भोळो।
हूग्यो डाफाचूक, न समझूं जग रो रोळो।
कह 'संतू' कविराय, तारज्यो बण नै तरणी।
टाबर म्हूं अणजाण, मात थे मोटा करणी॥
दरसण सूं सुख उपजै, हिवड़ै हरख अपार।
मन री आसा पूरज्यो, महाकाळ सिरकार॥
महाकाळ सिरकार, भगत नै स्सोरो राखो।
जग री उळटी चाल, झालियो थां’रो पाखो।
कह 'संतू' कविराय, करूं तन मन धन अरपण।
आसा मन री अेक, हुवै नित सिव रा दरसण॥
अरजी बाबा सांभळो, कोनी मांगूं नोट।
दिनग्यां दही’र खीचड़ो, दोपहरी में रोट॥
दोपहरी में रोट, सांझ रा खीर लापसी।
मूंडो थकै न खा’र, पेट भी कियां धापसी।
कह 'संतू' कविराय, बापजी थांरी मरजी।
जीमुं मन री मौज, सांभळो बाबा अरजी॥
बांट बंधायां रोकड़ी, गावै मंगळ गीत।
मायड़ जायी गीगली, बदळी घर री रीत॥
बदळी घर री रीत, हरख सूं ढोल बजावै।
जाग्या कुळ रा भाग, मनां में मोद मनावै।
कह 'संतू' कविराय, खुसी सै लोग लुगायां।
नाचै नौ नौ ताळ, रोकड़ी बांट बधायां॥
दादा थारै हेत रा, कतरा करूं बखाण।
पोती माथै मन घणो, जीवै जिण रै पाण॥
जीवै जिण रै पाण, काळजै नेड़ी राखै।
पोती जीम्यां फेर, डोकरी रोटी चाखै।
'संतू’ मेळै जाय, ले लिया पोती वादा।
खाली हाथ न आय, रमतियो ल्याजै दादा॥
बोझो बेटै जाणिया, बहु जाण्या बेकार।
बूढा माय'र बाप नै, छुड़ा दिया घरबार॥
छुड़ा दिया घरबार, पूछ नीं घर में आं री।
रोटी मिलै न अेक, मांगता फिरै भिखारी।
कह 'संतू’ कविराय, काम ओ मत कर कोझो।
मायत मिलै न फेर, मान मत आं नै बोझो॥
धोरां वाळी रेत में निपजै सगळा धान।
मोठ मूंग तिल बाजरो, हरिया इण रा पान॥
हरिया इण रा पान, इसबगुळ तारामीरो।
सरसूं मेथी कणक, ज्वार जौ धणियो जीरो।
कह 'संतू' कविराय, मूंफळी लागै जोरां।
चवळा चीणां ग्वार, उगावै धरती धोरां॥
बेटी जलमी आंगणै, घणै कोड री बात।
सुख रो सूरज ऊगियो, बीती काळी रात॥
बीती काळी रात, लाडली लिछमी जायी।
कमतर मत तूं आंक, घरां में बांट बधायी।
'संतू’ री सुण बात, भाव माड़ा तू मेटी।
लिछमी रो औतार, आंगणै जलमी बेटी॥
ताती चालै लू घणीं, जीव रह्या दुख पाय।
भूखा डोलै सांडिया, तिरसी डोलै गाय॥
तिरसी डोलै गाय, चळूभर नीर न पावै।
मिनख हुयो मनहीण, गूंग गोचर नै बावै।
कह 'संतू' कविराय, ऊत दिखै अब जांती।
गौ हित धर मन पीड़, पूनड़ी चालै ताती॥
मायड़ नै मांडूं भणूं, बोलूं कर कर हेज।
मनड़ै रै आकास पर, मायड़ सूं ही तेज॥
मायड़ सूं ही तेज, चमक ज्यूं हीरो पळकै।
घणा बधै मन भाव, सबद री नदियां खळकै।
कह 'संतू' कविराय, नहीं अटळां री बायड़।
भारत री सिरमौड़, आपणी भासा मायड़॥