धीरा धीरा ठाकुराँ गुम्मर कियाँ म जाह।
महुँगा देसी झूँपड़ा जै घरि होसी नाह॥
नाह महुँगा दियण झूँपड़ा न्रिभै नर।
जावसौ कड़तळाँ केमि जरसौ जहर॥
रूक-हथ पेखिसौ हाथ जसराज रा।
ठिवंताँ पाव धीरा दियौ ठाकुराँ॥
(हाला जसाजी की स्त्री झाला रायसिंह को संबोधित कर कहती है) है ठाकुर! धीरे-धीरे चलो। गर्व करते हुए मत जाओ। यदि मेरे निर्भय पति घर पर हुए तो वे झोंपड़ों को बहुत महंगे मोल कर देंगे। हे झाला! जाकर कैसे तुम जहर को पचाओगे। तुम खड्गधारी जसराज के हाथों को देखोगे। हे ठाकुर! चलते हुए अपने पाँवों को धीरे-धीरे रखो। अर्थात् पाँवों की आहट मत होने दो।