अरक जसौ जगि आथमै गौ चकवाँ गुणियाँह।

भुवण अंधारौ भाँजिसी त्रिभुवण पति कुणित्याँह॥

तियाँ कुणि भाँजिसी भुवण अंधियार तण।

भमै नर संजोगी विजोगी इणि भुवण॥

सुकवि चकवा दुखी सुखी कुणि करै सक।

आजि जगि आथमै जसौ दूजौ अरक॥

स्रोत
  • पोथी : हालाँ झालाँ रा कुंडलिया ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय