अेवी रळतळी आरांण ऊनी, खळां तंडळ खाय।

बीजळा ज्यूं वुहै बाधै, घड़ा अेकण घाय॥

तो घण घाय जी घण घाय, धापी रळतळी घण घाय।

वैर वीरम तणे वाही, निसंक जोध निडार।

हात गोगादेव हूंता, धपाई रत धार॥

(तो) रत धार जी रत धार धापी, रळतळी रत धार।

कटे ऊदल दलो कटियौ, धीर हैसूं वैर।

वैर वीरम तणो वाळे, वाळजे इम वैर॥

(तो) इम वैर जी इम वैर, गोगै वाळियौ इम वैर॥

कट घरट सूता दला कट, ऊभै वटका ईस।

छूटती धर जाय छणकी, सेस वाळे सीस॥

धर सीस जी धर सीस, जाती वाजवी धर सीस॥

बिजड़ गमियै अरां वाळे, जौइयां जड़ मूळ।

बाप कज बैरियां बेटौ, धडच भेळा धूळ॥

अै धूळ जी धूळ, अरियां काटियौ अै धूळ॥

भांज राणकदेव भाटी, सबळड़ो अरि साथ।

कमध गोगो अमर कीधौ, नमो जळंधर नाथ॥

नव नाथ जी नव नाथ, नाथां ऊपरा नव नाथ॥

स्रोत
  • पोथी : वीरवांण ,
  • सिरजक : बादर ढाढी ,
  • संपादक : लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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