साहित ब्रह्म सरूप समपै प्राण समाज नैं

रमै समैं अनुरूप अंग पळटतो, ऊदला

साहित रो संचार आणै ऊंची आतमा

आतम-बल आधार संकट मिटै समाज रा

चौड़े चमकावैह आतम रै आभास नैं

साहित सरसावैह सगळै देस समाज नैं

जद-जद किणी समाज में आवै पतन अथाग

बीती संपत बावड़ै इण साहित अनुराग

राजनीत रा रोग सूं पड़े विपद जद पूर

दूर करै दुख देस रो कै साहित कै सूर

साहित बिना समाज में साहस रहै सत्त

सत साहस बिन सर्वदा जीवण दुखी जगत्त

दुखियां नैं झेलो दियै निरजीवां सरजीव

साचो सयरण समाज रो साहित सबक सदीव

साहित संदै आसरै तीख रह्यो रटो वीर रजथान

साचो पंथ सुतंत्रता साहित रो सनमान

रटो वीर रजथान रा साचो मंत्र सदीव

जीवै देस समाज वै साहित जिकां सजीव

स्रोत
  • सिरजक : उदयराज उज्जवल ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर
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