चोपई

चिहुं दिसि चावु गढ चीतोड़, वींझाचल महि विसमइ ठोड़ि।

रतनसेन राजा रंढाल, कलह करूर महा कंधाल॥

तसु घरि नारि अछइ पदमिणी, सेषनाग सिरि जिम हुइ मणी।

लेई सकइ कोइ तेह, तिणि करणि शुं भाखुं एह॥

साहि कहइ संभलि हो बंभ, एवडु फोकट कीउ आरंभ।

बीजी वात सहू हिव तिजु, गढ चीतोड़ तणु शु गजु॥

ऊभाऊभि लीउं पदमिणी, जीवत पकड़ुं धणी।

सबल सेन ले आलिम चडिउ, धर धूजी वासिग धड़हड़िउ॥

कवित्तं

सलहदार हथीयार, लेइ आगलि अवधारी।

संभाली सर सेल, माहि भेजी भंडारी।

बीबी तब पूछीउ, कहां पदमिणि तुम्ही आंणी।

च्यारि पंच नहीं पदमिणी, किसी तिसकी सुलितांणी।

तेड़ावि व्यास ततखिणिहि, पूछइ वात विगति बहु।

संघलां टालि जिणि ठांणि हइ, कहां राघव पदमिणि कहु॥

हसि बोलइ सुलितांण, कहां राघव पदमिणि कहु।

रतनसेन गढ़ चित्रकोट, गहिलोत राइ पहु।

पलांणीया अलावदी, जल थल अकुलांणइ।

स्रग्गि इंद्र खलभलिउ, पड़्या दह देस भगाणइ।

फणिवइ पयालि वासुगि दुडिउ, कहइ साहि विग्रह करूं।

मारूं सदेस हिंदूआण कुं, एक एक जीवित धरूं॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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