सुख संपति दायक सकल, सिधि बुधि सहित गणेस।

विघन विडारण विनयसुं, पहिली तुझ प्रणमेस॥

ब्रह्मा विष्णु शिव सइं मुखइं, नितु समरइं जसु नांम।

ते देवी सरसति तणइ, पद युगि करूं प्रणांम॥

पदमराज वाचक प्रभृति, प्रणमी निज गुरु पाइ।

केळवस्युं साची कथा, कांणि आवइ काइ॥

नबरस दाखइं नव-नवा, सयण सभा सिणगार।

कवियण मुझ करियो कृपा, वदतां वचन विचार॥

वीरा रस सिणगार रस, हासा रस हित हेज।

सामि-धरम-रस सांभलउ, जिम हुइ तनि अति तेज॥

सामि-धरम जिणि साचविउ, वीरा रस सविसेष।

सुभटां महि सीमा लही, राखी खित्रवट रेख॥

गोरा रावत अति गुणी, वादल अति बलवंत।

बोलिसु वात बिहुं तणी, सुणियो सगला संत॥

रतनसेन राजा तणइ, छलि हूआ अति छेक।

गोरउ वादल बे गुणी, सत्तवंत सविवेक॥

युद्ध करी जिम जस लीउ, वसुहा हूआ विख्यात।

चित्रकोट चावउ कीउ, ते निसणउसहु वात॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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