आर्या
शंकर–गुरु–गणनाथान्,
नत्वा वर–वीर–छंद–आरम्भे।
कवयेऽहं रणमल्लं,
प्रतिमल्लं यवन–भूपस्य॥

छत्रधिप–मद–हर्ता,
कर्ता कदनस्य समर–कर्तृणाम्
वीर–जयश्री–धर्ता,
रणमल्लो जयति, भू-भर्ता॥

यम–सदनं प्रतिनीताः,
सीता–रमणेन दानवाः स्फीताः।
अधुना कमधज–मल्लो,
रणमल्लस् तत्र तान् नयति॥

हम्मीरेण त्वरितं,
चरितं सुरताण–फोज–संहरणम्।
कुरुत इदानीमेको,
वरवीरस्, त्वेव रणमल्लः॥

दिल्लीपति परिभूतौ,
तद् ददृशे दृश्यते च बाहुबलम्।
शकशल्ये रणमल्ले,
यमतुल्ये तिमिरलिङ्गे यत्॥

कति कारयन्ति भूपा,
भुवि यूपान् केऽपि वापिकाः कूपान्।
एको ननु पुनरास्ते,
रणमल्लो घोरि कारयिता॥

यदि न भवति रणमल्लः,
प्रतिमल्लः पादशाह–कटकानाम्।
विक्रीयन्ते धगड़ैर्,
बाजारे गुर्जरा–भूपाः॥

सुभट–शतैरति विकटं,
पटु करटिघटाभिरुत्कटं कटकम्।
तन्नटति रणमल्लो,
रणभुवि का वैरिणां गणना॥

अनवरतं भरत-रसं,
सरसैः सह रत–रसं समं स्त्रीभिः।
वीर–रसं सह वीरैर्
विलासयत्येष रणमल्लः॥

खल–कमला गुरु–हरणं,
पर-वरणं समर–डम्बरारम्भे।
शिव शिव रणमल्लोऽयं,
शकदल–मद–मर्दनो जयति॥

॥चुप्पइ॥
सतिरि सहस साहणवइ साहण,
गई अरदास पासि सुरताणह।
कणगरु कोष लीध हरि हिंदू,
तु रणमल्ल इक्क नह बंदू॥

पुण फुरमाण आण सुरताण (णी),
नहि रणमल्ल गणइ रणताणइ (णी)।
जिम हम्मीर वीर सिम्भरवइ,
तिम कमधज्ज मूंछ मुहि मुरवइ॥

चंचलि चड़ि चिहू दिसि चंपइ,
थर थर थाणदार उर कंपइ।
कमधज करि धरि लोह लहक्कइ,
बिबहर बुबंअ बुबंह बक्कइ॥

निसि खंभाइच नयर उध्रकइ,
धूंधळि धूंस पड़इ धूलक्कइ।
प्रह पुक्कार पड़इ (पढइं) पट्टण तळि,
रे रणमल्ल धाड़ि जब संभळि॥

मुहड़ा (सि) या मीर रहमाणी,
दाम हराम करइ सुरताणी।
माल हलाल खान, खिजमत्ति,
तु रणमल्ल इक्क नह खित्ती॥

इक रणमल्ल राय सुणि आलमि,
रहिउ हुई हैराण खुंदाळम।
हेलां लाखबंद बुल्लावि,
लखि फुरमाण खान चल्लावि॥

हय गय कटक थाट उल्लट्टिय,
दहु दिसि पंडरवेस पलट्टिय।
निहुटि वाटि काढ गढ घल्लि,
करुपराण रैयत रणमल्लि॥

ईडर भणी भींच सुरताणी,
फूं फूं कार फिरई रहमानी।
मूंगल मेच्छ मुहइ मच्छर भरि,
हसि हुसियार हुया हल-हल करि॥

॥सारसी॥
फुंगराई फूंफूफार फारक फौज फरि फुरमाणियां।
हुंकार कर कड़ी करइ सर झड़ि करवि करि कम्माणियां।
फुक्कारि मीर मल्लिक मुफरद, मूंछ मरड़ी मच्छरइ।
संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

॥दूहू॥
साहस वसि सुरताण दळ, समुहरि जिम चमकंत।
तिम रणमल्लह रोस वसि, मूंछ सिहरि फुरकंत॥

॥सारसी॥
फुरफुरहि लंब अलंब अंबरि नेज निकर निरंतर।
भरभरहि भेरि भयंक भू कर भरळि भूरि भयंकर।
दड़दड़ी दड़दड़ कारि दड़वड़ देसि दिसि दिसि दड़वड़इ।
संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

॥दूहू॥
साहस वसि सुलतान दळ, समुहरि जिम दमकंत।
तिम तिम ईड़र सिहर वरि, ढोल गहिर ढमकंत॥

॥सारसी॥
ढम ढमइ ढम ढम कर ढूंकर ढोल ढोली जंगिया।
सुर करहि रण सरणाइ समुहरि सरस रसि समरंगिया।
कळकळहि काहल कोडि कलरवि कुमल कायर थरथरइ।
संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

॥दूहू॥
जिम जिम लसकर उध्रसइ, करी नि बुं बुं कार।
तिम तिम रणमल्ल रोस भरि, तोलइ तरल तुखार॥

॥सारसी॥
तुक्खार तार ततार तेजी तरल तिक्ख तुरंगमा।
पक्खरिय पक्खर पवन पंखी पसरि पसरि निरुप्पमा।
असवार आसुर अंस असलीइ असणिअ असुहउ (ड) ईडरह।
संचरइ सक सुरताण साहण साहसी सवि संगरइ॥

॥चुप्पइ॥
हल ऐयार हकारिव बुल्लइ,
भुजबळि सबळ मुट्ठिदळ घल्लइ।
गयु खान खुद नगतळि चल्लिय,
सकदळ दुहु दिसि दिद्ध डहल्लिअ॥

मलिक मंत्र मज्झिम निसि किद्धउ,
तव हेजव फुरमाण स दिद्धउ।
ईडरगढि अस्सइ चढि (डि) चल्लिउ,
जइ रणमल्ल पासि इम बुल्लिउ॥

सिरि फुरमाण धरवि सुरताणी,
हय गय (धर दय) हाल माल दीवाणी।
अगर–गरास दास सवि छोड़िअ,
करि चाकरी खान कर जोड़िअ॥

रा असि सरिसु बाहु उठ भारिअ,
बुल्लइ हठि हेजब हक्कारिअ।
मुझ सिर कमल मेच्छ पय लगइ,
तु गयणंग (म) णि भाण न उग्गइ॥

जां अंबर पुड़ तळि तरणि रमइ,
तां कमधज कंध न धगड़ नमइ।
वरि वड़वानळ तण झाळ समइ,
पुण मेच्छ न आपूं चास किमइ॥

पुणु (पुण) रणरस जाण जरद्द जड़ी,
गुण सींगणी खंची खंती चड़ी।
छत्तीस कुलह बल करिसि (सु) घणुं,
पय मग्गिसिरा हम्मीर हम्मीर तणुं॥

दळ दारुण दफ्फर खान जयी,
मिइं भग्गउ अग्गइ खग्ग रयि।
हिव पट्टण पद्धरि धरी सुपयं,
नइ विनड़िसु सत्तिरि सहस सयं॥

मिंइ संगरि समसुद्दीन नड़ी,
पड़ि भग्गउ अंगो अंगि भिड़ी।
जव मंडिसि मुझ रणमल्ल समं,
तव देखिसि लसकर सरिस जमं॥

मम मोड़िय मंडि मलिक्क घणुं,
हुं समरि विडारण मेच्छ तणुं।
जव उठिसि हठि हक्कंत रणि,
तब न गणूं त्रण सुरताण तणि॥

बळ बुल्लिम वल्लि मलिक्क कहि,
मम वरणिसि मुण (आ) सिम दुत मुहि।
जब चंपिसि ईडर सहरि तळं,
तब पेक्खिसि मुह रणमल्ल बळं॥

हय हेडवि सवि हेजब्ब गया,
वहि वल्लि मल्लिक सलाम किया।
हिव करिसु धरा रणमल्लं मयं,
इम बोल्लइ हठि तोलंत हयं॥

नर केसरी ईडर सिहरि धणी,
जव हेजब मुहि फरियाद सुणी।
तव चमकि ढमक्कि मल्लिक करी,
धसि धाड़िइ धायउ धूंस धरी॥

॥चुप्पइ॥
पसरइ वंडरवेस भयंकर,
नर पोक्कारहि करहि निरंतर।
हयमर वेगि गया ईडर तळि,
सवि रणमल्ल करइ साह सिहुली॥

पसरइ वंडरवेस भयंकर,
नर पोक्कारहि करहि निरंतर।
हयमर वेगि गया ईडर तळि,
सवि रणमल्ल करइ साह सिहुली॥

बिबहर भरि बुंबारव वज्जइ,
जळहर जिम सींगणि गुण गज्जइ।
बहु बलकाक करइ बाहुब्बळि,
धंधळि धगड़ धरइ धरणी तळि॥

अरियण दारण! दीन अभयकर,
पंडरवेस थया निब्भय धर।
बंभण बाळ बदि बहु किज्जइ,
धा कमधज्ज धार करि लिज्जइ॥

॥पंचचामर॥
रउद्द सद्द आसमुद्द साहसिक्क सूरइ,
कठोर थोर घोर छोर पारसिक्क पूरइ।
अहंग गाम गेह गाहि गालिबाल किज्जइ,
विछोहि जोइ तेह नाथ! मेच्छ लोड़ि लिज्जइ॥

॥दूहू॥
जिम जिम कमधज चीतवइ, असपति सरिसु विवाद।
तिम तिम योगिनी रुहिर रसि, रत्ता करइ प्रसाद॥

॥सारसी॥
परसादि बक्षि दिगन्त योगिनि जय जयारव अंबरि।
उछक्कि छक्कि दियंत सिक्खा वीर धीर धरावरि।
दुद्दम्भ मेच्छ विछोह रोहअ खोहि गाहवि किज्जइ।
तूं हट्टि उट्ठवणीइ हट्ठवि लोह हत्थ लिज्जत॥

॥दूहू॥
जिम जिम लसकर सोह रसि, लोड़इ सासन, लक्खि।
ईडरवइ चउसइ चड़इ, तिम तिम समरि कड़क्कि॥

॥पंचचामर॥
कड़क्कि भूंछ भींछ मेच्छ मल्ल मोलि मुग्गरि।
चमक्कि चल्लि रणमल्ल भल फेरी सगरि।
धमक्कि धार छोडि धान छंडि धाड़ि धग्गड़ा।
पड़कि वागि (वाटि) पक्कड़ंत मारि मीर मक्कड़ा॥

॥चुप्पइ॥
हय खुर तळ रैणइ रवि छाहिउ,
समुहर भरि ईडरवइ आइउ।
खान खवास खेलि बलि धायु,
ईडर अडर दुग्ग तळ गायु॥

दम-दम करि (कार) दमाम दमक्कइ,
ढम-ढम ढम-ढम ढोल ढमक्कइ।
तरवर पंडरवेस पहट्टइ,
तर-तर तुरक पड़इ तलहट्टइ॥

विसर विरंग बंग रव पसरइ,
रहि रहिमान मनन्तरि समरइ।
गह गुज्जारि निमाज कराणी,
हयमर फोज फिरइ सुरताणी॥

सत्तिरि सहस सहिय सिल्लारह,
दहु दिसि फिरवी करि पुक्कारह।
सुहड़ सद्द संभळिवि रउद्दह,
धसमस धूंस करइ मफरद्दह॥

॥हांढ़की॥
मद भींभळ सेरबचा बंगाली मूंगण महामलिक्क।
ईडर अद्धर सिक्खरि रणथम्भरि तळि तरवरइ तुरक्क।
हक्कारवि विक्कट बहकटि चल्लइ बुल्लइ विरद बहुत्त।
सुरताण सरिस सिल्लार सिपाही सवि मिळि समरि पुहुत॥

तळहट्टिइ मेल्लवि तरळ तुरक्की तार ततार तुरंग।
उल्लट्टिय असपति असणिअ वायरि सायर वेलि–तरंग।
हल-हल विगरी-विगरी बोलंतिअ नीर लहरि छिल्लंत।
रण कंदळि कळह करइ किलवायण कायर नर रेलंत॥

हेखारवि हयमर हसमसि खुररवि असणि किपाण कसंत।
उद्धसवि कसाकसिअ सितर विसि धसमसि धरणि धसंत।
भू–मंडळि भड़ कमधज भड़ोहड़ि भुजबळि भिड़स भिड़ंत।
रणमल्ल रणाकुल रणि रोसारुण मुणसत्तणि तु वरंत॥

उल्लाळवि झालवि जुज्झ कमालह लथबथि लोथि लड़ंत।
धारुक्कट धारि धगड़ धर धसमसि धसमसि धुब्ब पडंत।
कमधज्ज उदयगिरि मंडण सविता झलमल मल्ल भिडंत।
धुरि धसि धसि धूंस धरइ धगड़ायणि धर वरि रुंड रळंत॥


॥चुप्पइ॥
वर कमधज्ज वीर शासन छळि,
कित्ति फुरइ नव खंडि धरा तळि।
असपति सरिसु इक्क ईडरवइ,
रणि रणमल्ल मूंछ मुंहि मुखई॥

असुर अभंग अंग ईडर तळि,
असपति दळ कोलाहल संभळि।
बंभण बाळ सुरहि अबला छळि,
हठि उठिउ कमधज भूजाबळि॥

पक्खरि पंडरवेस भिडंतु,
धसि धगड़ायण धूंस धरंतु।
हणि-हणि मुणसिम भणई असंभम,
ताल मिलिउ हरि जंभ तणउ जिम॥

॥दुमिला॥
गोरी दळ गाहवि दिट्ठ दहु द्दिसि गढि मढि ग़िरि गह्वरि गड़ियं।
हण-हणि हक्कंतउ हुं हुं हय हय हुंकारवि हयमरि चड़ियं।
धड़हड़ तउ धड़ि कमधज्ज धरातळि धसि धगड़ायण धूंस धरइ।
ईडरवइ पंडरवेस सरिसु रणि रामायण रणमल्ल करइ॥

रोमचिय रण रसि (स) राढिऽरावण रहि रहि बल बोलंत वळि।
पक्खर वर पुट्ठि पवंगम पट्ठिय पहुतउ पह पतसाह दळि।
असि मारवि रूंब रणायरि रगड़िअ भंजइ धगड़ महा भड़या।
रणमल्ल रणंगणि मोड़ि मिळंता मेच्छायण मूंगळ मु (मि) ड़िया॥

मुहु उच्छळि मूछ मुहच्छवि कच्छवि भूमइ भूंछ समुच्छि लिया।
उल्लाळवि खग्ग करग्गि निरग्गळ गणइ-तिणइ दळ अग्गलआ।
प्रल्लयकरि लसकरि लोहि छबच्छब छंट करइ छत्तीस छळि।
रणमल्ल रणंगणि राउत विलसइ रवितळि खित्तिय रोस बळि॥

सींचाणउ रा कमधज्ज निरग्गळ झड़पइ चड़वड़ धगड़ चिड़ा।
भड़हड़ करि सत्तिरिसहसभड़कइकमधजभुजझ (भ) ड़वायभ (झ) ड़ा।
खति तणि खय करि खक्खर खूंदिय खान मान खंडत हुया।
रणमल्ल भयंकर वीर विडारण टोडरमलि टोडर जडिया॥

॥चुप्पइ॥
सोनगिरउ कन्हड़ सिम्भरवइ,
वेढि करि गज्जणवइ असुरइ।
दहु दिसि दुज्जण दळ दावट्टिय,
सोमनाथ वड हत्थइ झट्टिय॥

आदर करि संकर थिर थप्पिय,
अचळ राज चहुआण समप्पिय।
असपति सरिसु साह सिम बक्कइ,
मुरट मान रणमल्ल न मुक्कइ॥

मरड़ी मूछ वडी मुहि मंडइ,
मेच्छ सरिसु गह गाह न छंडइ।
कसवइ काळ किवाण करट्ठिय,
जां रणमल्ल रोस वसि उट्ठिय॥

पंडरवेस डरइ समरि बाहुब्बळि,
खग्ग ताल जिम तोलइ करतळि।
ढुज्जउ दंड दुदंभ दुहंडइ,
इक्क अनेकि मलिक्क विहंडइ॥

॥भुजंगप्रयात॥
जि बुंबाअ बुंबा उलक्कि सलक्कि,
जि बक्कि बहक्कि लहक्कि चमक्कि।
जि चंगी तुरंगी तरंगि चड़ंता,
रणमल्ल दिट्ठेण दींन दड़ंता॥

जि मुद्दास मुद्दा सदा रुद्द सद्दा,
जि बुंबाळ चुंबाळ बंगाळ बंदा।
जि झुज्झार तुक्खार कम्माल मुक्कि,
रणमल्ल दिट्ठेण ते ठाम चुक्कि॥

जि रुक्का मल्लिका बलक्का कपाड़ी,
जि जुद्धा मुडुद्धा सनद्धा भजाड़ी।
तिभू आ खांडीआ घड़ी दंड किज्जि,
रणमल्ल दिट्ठि मुंहि घास लिज्जि॥

जि बक्का अरक्का सरक्का बहंता,
जि सब्बा सगब्बा झरब्बा सहंता।
जि जुज्झार उज्जार हजार चल्लि,
रणमल्ल दिट्ठि मुंहि घास घल्लि॥

॥छप्पय॥
हिव किरमाळ पहारि धारगढ गाहवि छंडू।
कस बेकड़ी किवाण पट्टि किलवायण खंड़ूं।
भुजबलि भल्लइ भिड़िअ भरी भय भरुयचि पइसूं।
धरीअ खंभाइच्च असुर सिर चंपवि बइसूं।
प्रह ऊगमि पट्टणि पट्ट करि, धगड़ायण धंधळि धरूं।
ईडरवह रा रणमल्ल कहि, इक्क छत्त रवि तळि करूं॥

स्रोत
  • पोथी : रणमल्ल छंद ,
  • सिरजक : श्रीधर व्यास ,
  • संपादक : मूलचंद प्राणेश ,
  • प्रकाशक : भारतीय विद्या मन्दिर शोध प्रतिष्ठान, बीकानेर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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