दूहा

श्री वन्दौं करनी सकति, मो भव हरनी मात।
असरन सरनी अम्बिका, जय करनी निज जात॥

श्री करनी हरनी विघन, तो कर मेरी लाज।
तैसे मोहि उबारियो, जैसे शाह जहाज॥

कवित्त

व्है कै हरि रूप वारि निधि तैं उबार लीन,
करुणा पुकार जब ताहि ठां करी करी।
साह पर्‌यो जगरू समाज युत संकट में,
तुरत जिहाज तेरे हाथ तें तरी तरी।
करनी हमारी बेर आलस उड़ावें क्यूं न,
विकट चली है जात हमको घरी घरी।
अविद्या कृपाण तव दासन पै तोकि रही,
अबका विलोक रही अम्बिका खरी खरी॥
स्रोत
  • पोथी : माताजी रा छंद ,
  • सिरजक : केसरी सिंह सौदा ,
  • संपादक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : चारण साहित्य शोध संस्थान प्रकाशन, अजमेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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