काया लाग्यौ काट, सिकलीगर सुधरै नहीं।
निरमळ होय निराट, तो भेट्यां भागीरथी॥1॥
त्हारउ अदभुत ताप, मात संसारे मानियउ।
पाणी-मुंहड़इ पाप, जो तूं जाळइ जान्हवी॥2॥
पुळियइ मग पुळिया, दरस हुवां अदरस हुवा।
जळ पइठां जळिया, मंदा कम, मंदाकिनी॥3॥