तन में मन में रहत त्यां, धन में रै ज्यां धूळ।

सूमां नै करिये सपद, नारायण निरमूळ॥

लोभ अनय लाचार लख, अनाचार अनुकूळ।

पापात्मा पामर पुरुष, परमात्मा प्रतिकूळ॥

नीच नराधम नर करत, अधम अधोगत ऊह।

स्वारथ मदमाता सदा, परमारथ प्रत्यूह॥

क्रपण, सूम, मूंजी, कुटल, अतलोभी अवतारा।

मूढ़ मिंत पंच मित्र हा! नर कंजूस निहार॥

पसूधरम स्वारथ प्रगट, पुरुष धरम परमार्थ।

सूमां सुदतारां सहज, सुकवि विचारो सार्थ॥

धन घर में ऊंडौ धरै, मूरख भरै मंजूस।

देख दीन नहिं दांन दे, कहिये सो कंजूस॥

सुकवी सुघड़ सुपात्र रौ, करै आदर कोय।

दांन दे विद्वांन नै, सूम कहावै सोय॥

खणभंगर काया खलक, राव रंक अमराव।

अजरामर समझै अटळ, सूमां कुटळ सुभाव॥

दिसा भूल जूं देखिये, सूमां विषम सुभाव।

ऊंधी दिस सूझै अधक, सूधी लखै साव॥

रसना सूं रघु रांम रौ, नांम लेत निकांम।

सूम रटै सानन्द सूं, निसदिन बावन नांम॥

भावहि होवत भावना, भल अपने मन भाय।

मन छोटो जिण मिनख रौ, देवत छोटौ दाय॥

मंगण सूं सूम मिळै, बसै सदा गृह बीच।

ईहग म्हारै इष्ट री, नकल करै खुद नीच॥

महादेव महिमा करै, सूम सदा सिर नाय।

सुपनै नहीं गणेश रौ, सूमां नाम सुहाय॥

बालकांड री बारता, सूमां नहीं सुहाय।

रामचन्द्र भुवचन्द्र रो, लिपळापणौ लखाय॥

सूम कथा संसार में, छिप सुण लै छह कांड।

रामायण सुणतां रसिक, सुणै सुंदर कांड॥

रामायण रावण तणी, सुण महिमा सरमाय।

भारथ सुणियां सूं भलौ, दुर्जोधन जस दाय॥

बीस नाम अरजुन विमळ, सिमरण सुखद सुहाय।

एक नाम अरजन तणौ, सूमां अधिक सुहाय॥

पांडव जस इन्दू पढ़ै, सूम चन्द्रका सोध।

स्रूपदास कांमध सभा, पूरण कहत प्रबोध॥

वर्णमाल पढ़तां वढ़ै, उर अन्तर अभिलाख।

ताकत सूम तवर्ग तब, भाव संधि गत भाख॥

मनू ब्रहस्पत सुक्र मत, निलज सीखै न्याय।

सूमां नीती सदै, चाणक री चित चाय॥

विलखै दांमां वासतै, रांमां रौ ज्यूं रोझ।

अपणी अंधी अकल सूं, बोत मरै ठग बोझ॥

महा प्रपंचक मूढ मति, संचक धन दै सीस।

रंचक डरै राम सूं, वंचक विसवा वीस॥

सुख सूं सोरौ सोवणौ, हरख जोवणौ हाल।

खाणौ देणौ खरचणौ, सूमां रै उर साल॥

करण किफायत री कथा, सूमां घणी सुहाय।

गिटियौ नह जावै गजब, भिस्टौ खावण भाय॥

पेख बधाई पुत्र री, नैणां न्हांकत नीर।

बधै वंस त्यों दुख बधै, सूमां तणै सरीर॥

सीख दियां सूं सूम रै, हिरदै आणंद होत।

वाह वाह करता वहै, बेगाळी लख बोत॥

आठूं दिस दौड़ै अधम, आठूं पहर उदास।

सूमां रै नहिं सुपन में, विश्वंभर विसवास॥

गछ ले आवे गोचरी, मंगळ बारै मास।

सूम सुहावै सहज सूं, बेळा तेळा बास॥

करै इग्यारस कोड सूं, चौथादिक व्रत चाव।

सूमां रै उर में सदा, भूख भुवाजी भाव॥

पुन रौ परउपकार रौ, आदर रौ नहिं याद।

जस रौ रस रौ जगत में, सूमां रै नहिं स्वाद॥

सूम नीत भूंडी सदा, रीत रसम रुळ जाय।

स्वारथ जिण घर संचरै, परमारथ पुळ जाय॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय
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