गाहा

आद सगत आदेसं
व्रध वेस जग जननी।
मिळ सब काज अग्रेसं
मेहा सिधू विघन दुख मोचन॥

ब्रह्मा विसन महेस बखांणी।
जोगण च्यार वरण जुग जांणी।
मिळ नवदूण क्रोड़ ब्रहमांणी।
राजत छपन कोड़ रुद्रांणी॥

भाल सिंदूर बंद सोभंती।
केळां चिरत अनेक करंती।
लोवड़ियाळ लीळ लाडंती।
सब मिळ रमै अखाड़ै सगती॥

छंद रोमकंद

वज भूंगळ चंग म्रदंग वळोवळ, डाक त्रंबाक वजै डमरू।
सहनाइय मादळ भेर वखांणस, संख सो झालर वीण सरू।
उपवै तन वाजत भांत अनौअन, पार अपार न कोय प्रमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

गज वोमह गाज सबद्द गरूरह, वज्ज पवन्न वखांण वसै।
धुज गोम नगां कसमस्स कमठ्ठह, लच्चक कंध फणंद लसै।
इम होत चिरत्त सो मात महोरथ, जोर अदब्भुत रंग जमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

मदमत्त खिलत कपूर महक्कत, नूर सपूर मुखां नयणां।
श्रुत कुंडळ मंडत उज्जळ सोभत, वक्कत जीह सुधा वयणां।
फिर झूळ सकत्त फिरंत फरग्गट, न्रतत रत्त नरत्त नमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

चख चोळ कियां भुज तोळ त्रसूळह, भक्ख ओमंख तंबोळ भखै।
इण भांत सगत्त किलोळ करत्तह, रत्त सो पत्र हबोळ रखै।
संग टोळ कियां अग्र खेतल सोभत, दूठ हिंगोळ दयत्त दमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

मद छक्क बतक्क दधक्क पियै मिळ, रुद्र अमंख अटंक रहै।
सगती नवलक्ख जिती सब सम्मळ, गोड़ सादूळ त्रसूळ गहै।
गिर गूंज सबद्द असाढह गाजत, धूज धरा पुड़ सेस धमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

केइ वाहण भ्रंग सुचंग सझे कर, केइ कुरंग आरोह कियां।
सगती सज संग हुं सात हि साझत, लोवड़ियाळ मतंग लियां।
अंग रंग भमंग जिसा महकायत, छेड़व तांम मळैछन मै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

संग सैणल देवल आद सगत्तिय, लांगिय छाछिय होलवियूं।
खोड़ियाळ बिरव्वड़ आवड़ खूबड़, आद सु राजल नागवियूं।
सुध मात रवेचिय नै डूंगरेचिय, चाळकनेचिय तेण समै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

जुत हास वदन्न हुलास विराजत, तास विकास मयंक तमो।
दिप देह प्रकास सुवास सु डंबर, सोभत सूर प्रभास समो।
निज रास सुरत्त तमास निरक्खत, भोपत जास अकास भ्रमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

कंठहार झळंमळ है श्रुत कुंडळ, तेज अणंकळ भांण तिसौ।
थररंत थळत्थळ दैत तणा दळ, जोर अप्रब्बळ वीज जिसौ।
कर रूप कळक्कळ पूर लियां पळ, भासत सक्कळ काज भ्रमै।
दुति गात प्रकासत रात चवद्दस, रंग करन्नल मात रमै॥

कवत्त

वीक नृप वर दियण, साह कमरौ संघारण।
तै पावस पर कोप, कीध ज्वाळानळ जाळण।
जाझी सगत्यां झूळ, मज्झ करनल मेहाई।
आखाड़ौ चवदस्स, इसी विध रचियो आई।
वध वध कड़ाह कर कर वदन, नर सब कर जोड़ै नमै।
चव्दस्स रात सिस चांनणै, रंग मात करनल रमै

स्रोत
  • पोथी : मेहा वीठू काव्य-संचै ,
  • सिरजक : मेहा बीठू ,
  • संपादक : गिरधर दान रतनू ‘दासोड़ी’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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