ऊनाळौ-सीयाळौ मिलकर दिखै तोड़ता दांतड़ली।

चोमासौ ऊभौ तरसावै, धोरा धरती रेतड़ली॥

आधी रातां काम करूकै, अदरां चाळै पूनड़ली।

डाकी काळ आवतौ दीसै, सुणलै भाया बातड़ली॥

गांव गंडकड़ा रातू कूकै, गादड़ कूकै रोहिड़ली।

घरा-घरां में बातां चालै, काळां मरसी गावड़ली॥

कुरज कुरळाय उड़कर जावै, मुड़ नीं आवै नाडड़ली।

मेह गयौ घरां आप सुण, काळ पड़ेलौ धाकड़ली॥

दाणा पाणी आंख दिखे नीं, नीं ऊगे है घासड़ली।

त्रिकाळ' आय मिनख नै मारै, डांगर देखै मौतड़ली॥

काळ गांव मै पड़ै मोकळा, तीजै कुरियौ धरतड़ली।

बरस आठवैं आय आघोरी, जीमैं बैठ्यौ ल्हासड़ली॥

बारै वरसां काळ पड़यां सूं, रिणी उजड़गी गांवड़ली।

जमुना बीचां मरवा चाल्या, नदियां थमगी धारड़ली॥

सइयां-भइयां काळ पड़यां सूं, दिखै फाटती आंखड़ली।

भूखौ मिनख मिनख नें खावै, दांतां चाबै हाडड़ली॥

खेजड़लै रा छोडा छांग्या, पांणी सीजै हांडड़ली।

घास-पात सगळा नै चाब्या, भूखा मरती गोरड़ली॥

मूंडै लाळां पड़ती दीसै, आंसू नाखै गावड़ली।

तावड़ियै में भटका खाती, जीव छोड दे भैंसड़ली॥

भूखी तीसी धूळ भरोड़ी, कांम करै दिन रातड़ली।

टाबरिया नै घरां छोड़ द्या, रोतां डुसका हिचकड़ली॥

टाबरिया गरळावै भूखा, मांस चाटलै आंतड़ली।

रोतां-रोतां हिचक्यां बंधगी, आंसू सूक्या आंखड़ली॥

गोद्यां मै टावरिया बिलखै, मावड़ बिलख रोटड़ली।

बाबल गुम-सुम बण ऊभौ है, ना निसैर है बोलड़ली॥

फाटी कुड़ती हाथ कटोरौ, लीरम-लीरा चूंदड़ली।

सुध-बुध भूली घर-घर मांगै, हाथ फैलाय मरवणली॥

काळ-दुकाळ अकलड़ी काढै, समझ रही नीं हीवड़ली।

रात अंधारी चोरी करता, पींडी झालै कुत्तड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मुंड़ै बोलै रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदार अली पडिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन
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