दूहा
अलख निरंजण आतमा, सुरसर हंस समांन।
सो सुत्रधारी सेवियै, गुर मुख ब्रह्म गिनांन॥
अलख निरंजण एक तूं, रूपै घणै रमात।
पार तिहारो परमपर, केवल कोकल हात॥
बाहर भीतर त्रैभूवण, अलख निरंजण अेक।
निरगुण गुण लीजै नहीं, अवगत पुरुष अलेख॥
वीदी नादी व्राहमण, जुग पंडित गुण जांण।
जाणूं को जइयै कहाँ, जव पिंड छोडै प्रांण॥
विण बळदां अरहट वहै, विण मालै घण नाव।
विण पांणी वाड़ी पियै, धर वाड़ी नभ वाव॥
अंबर वरसै धर भरै, सो जांणै सह कोय।
धर वरसै अंबर भरै, चीनै विरळौ कोय॥
छंद त्रिभंगी
भोमे वरसंता अंबर भरता, अजर जरंता अकलंता।
जम रा जीपंता आप अजीता, अरि दळ जीता अवधूता।
उनमना रहंता लै लावंता, पांचूं इन्द्री पालंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
काजी मुल्लाणं कथै कुराणं, वेद पुराणं वचांणं।
जहां ब्रह्म न जाणं जोग न जाणं, है वै पूछौ हिंदुवाणं।
प्रभु पुरुष पुराणं सुन्य समाणं, सहज समाणं धुनि सुणता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
उलटा आवंता पुलटा करता, बुरज बहोतर मन धरता।
प्याला पीवंता पवन पियंता, मद मनमंता घूमंता।
सुर विण सोसंता सहज समंता, जागत सुता संभळता।
माछंदर पुत्ता जोग जोगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
नवसै निनांणूं उलटी आंणूं, पछिम पयांणूं असमाणं।
अणभय नीसाणं नमो सिधाणं, दर दीवाणं परठाणं।
आगम पयांणं जोति जगाणं, पूछौ जोसी जाणंता।
माछंदर पुत्ता जोग जोगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
जिव्हा विण गाता वेद धुणंता, थिरता रमता सांभळता।
गावतरी जपता अजपा जपता तत भेदंता देवंता।
तिह लाग रहंता दुतर तरंता, कांम दहंता कलिवंता।
माछंदर पुत्ता जोग जोगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
उलटा ई गंगा भीतर अंगा, भेद भुअंगा लिव लगां।
तहां नील तरंगा अगम अलंगा, भेद चकर खट भेदंगा।
गरजै गैणंगा पवन सुचंगा, जोत तणा घर जाणंता।
माछंदर पुत्ता जोग जोगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
धारंत धियांनं अद्वैतानं, सदा सनांन गंगाणं।
तीरथ लखाणं देह मझाणं, गुर वचनाणं नाहाणं।
नर जोइ निधानं एह न मनानं, अे आसाणं अकलंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
दूरै दूरंता वास वसंता, रवि चंदा घर राखंता।
कुंडिलि निकळता सूधा कळता, सोमे अमृत सरवंता।
प्रभु अमी पीयंता बूढा टळता बाळा हूता बळवंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
अविचळ अविनासी बाळ अभ्यासी, रिध सिध दासी सनयासी।
विण नीर विकासी कंवळ प्रकासी, वाहर भीतर वनवासी।
अंग सदा उदासी आसन पासी, पाप न पासी पुनिवंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
ग्रह अंबर गाजै गहरौ गाजै, वीणा वाजै धुनि वाजै।
भै जमरो भाजै बूढा भाजै, भवदुख भाजै भय भाजै।
निरकार निवाजै नाथ निवाजै, और अनाजै नाहि एता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
इक पवन पुरांणी अगनि जगांणी, वीज खिंवांणी झमकांणी।
विण वादळ आंणी घण घोरांणी, पड़ै न पांणी पुणगांणी।
सिसु वेद सुधांणी विमळ वांणी, अगम कहांणी धुनि सुणता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
गोरख गोपाळं बूढा बाळं, व्रह्म कपाळं वरसाळं।
ऊघड़िया ताळं दीपक माळं, वपु देवाळं अजुआळं।
कंसाळं ताळं सबद निराळं, सुबद अनाहद संभळता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
निरकार निरंजण नाथ निरंजण, नमो निरंजण नाराणं।
पदमणी परहरणं अबळा अंजण, माया मंजण मनहरणं।
गह निद्रा गंजण खुध्या खंडण, त्रिसणा साजण सतवंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
रमतै सूं रमणा अगमे गमणा, इकचित रहणा एक मना।
कोइ कष्ट न करण भूख न मरणा, काया कसणी की करणा।
भेदे नहीं भ्रमणा नृगुण समरणा, पार उतरणा पुनिवंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
माणिक मुतियाणं विण समदांणं विण सीपाणं निपजाणं।
इळ पिंग सुखमाणं त्रैवैणाणं, देह मझाणं नाहाणं।
नर जोइ निधानं तत्त निदानं, ऐ आसाणं अकळंतां।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
घुरता नीसाणं नगर वसाणं, अविचळ थाणं सिधांणं।
दीपक दीरांणं मंदिर मंडाणं, त्रैभौ डाणं भेदांणं।
ब्रह्मा विसनाणं रुद्र रिखांणं, वेद वखाणं फड़ वकता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
आतम निधि पाई, सुनि वसाई, को भेदाई भ्रत भाई।
थिर आसण थाई वाइ वहाई, मांणि पाई मंझाई।
आलख लखंता करता हरता, भमर गुफा में भणकंता।
माछंदर पुत्ता जोग जुगत्ता, जागै गोरख जग सुता॥
कवित्त
आदि देव आदेस, अनंत आदेस अनंमी।
महादेव आदेस, अचळ आदेस अगंमी॥
चौरंगी आदेस, कणिर आदेस अमृत क्रत।
अनद नै आदेस, जोति आदेस जोग जुत॥
आदेस पुरसां एतलां नवनाथां गोरख नरां।
चत्रअसी सिधां आदेस चित, सिव ब्रह्मा हरि अहि सुरां॥
पटण एक नव प्रौलि, नगर कौ राजा निरगुण।
अलख लख्यौ नहिं जाय, वेग चालै चरणां विण॥
कर विण ग्रहै कब्बांण तीर अंबर दिस तांणै।
जुगति जोति जग जेठ, जोति कोइ विरळौ जांणै॥
साधकां सिधां पूछौ सुरां, इयै छंद पारक्ख अस।
कवि मेह कहै काछेसरी, जोग सिंगारह वीर रस॥