चोपई
एक दिवस भोजन नइ समइ, आवी दासी इम वीनवइ।
सांमि पधारू भोजन भणी, पाक हूआ हुई वेला घणी॥
आवी बइठो नृप बइसणइ, पटरांणीसुं प्रेमइं घणइ।
थाळ कचोळा कनकह तणा, सोवन पाटि पथराव्या घणा॥
प्रीसइ भोजन भगति भंडार, नारी रंभ तणइ अणुहारि।
राजा भोजन जीमइ रंगि, विचि विचि वात करइ कणयंगि॥
कदळी दळसुं घालइ वाउ, जिमतु जंपइ ते नर राउ।
आज न भोजन भावइ कोइ, नितु निसवादा तीमण होइ॥
शाक पाक सगळा पकवांन, धुरि निसवादा लागा धांन।
रूड़ी जुगति कर, रसवती, तब ते पभणइ परभावती॥
आसंगइ आंणी अभिमान, राणी बोलइ सुणि राजांन।
भगति न भावइ मुझ केलवी, तु कोइ नारी आणु नवी॥
परणु कोई जई पदमणी, ते जिम भगति करइ तुम्ह तणी।
अम्हे जिमाड़ी जांणां नहीं, कोप कीउ कामिणि इम कही॥
माणवती हुइ महिला मूल, माण गमाडइ विनय समूल।
विनइ गयइ न रहइ सोहाग, विण सोहाग न लाग न भाग॥
रतनसेन राजा रंढाल, तिजि भोजन ऊठिउ ततकाल।
तु हुं जु आणुं पदमिणि, भगति जुगति जीमूं ते तणी॥
एइंम गरवी नारी किसुं, नारी आगलि हुं किम खिसुं।
असक्य नहीं हुं आणण नारि, क्युं ए अबला कहंइ अविचारि॥