1

पुत्ते जाए कवणु गुणु, अवगुणु कवणु मुएण।
जा बप्पी की भुंहडी, चम्पिज्जइ अवरेण॥1॥

जइ भग्गा पारक्कडा, तो सहि मज्झु पिएण।
अह भग्गा अम्हहंतणा, तो तें मारि अडेण॥2॥

भग्गउं देक्खिवि निअय बलु, बलु पसरिअउं परस्सु।
उम्मिलइ ससि रेह जिवँ, करि करवालु पियस्सु॥3॥

जहि कप्पिज्जइ सरिण सरु, छिज्जइ खग्गिण खग्गु।
तहिं तेहइ भड-घट-निवहि, कन्तु पयासइ मग्गु॥4॥

संगरसएहिं जु वण्णिअइ, देक्खु अम्हारा कंतु।
अइमत्तहं चत्तड़कुसह, गयकुंभइं दारन्तु॥5॥

अम्हे थोवा रिउ बहुअ, कायर एम्व भणन्ति।
मुद्धि निहालइ गयणयलु, कइ जण जोण्ह करन्ति॥6॥

महु कन्तहो बे दोसडा, हेल्लि म झड़्खहि आलु।
देन्तहो हउं पर उव्वरिअ, जुज्झन्तओ करवालु॥7॥

पाइ विलग्गी अंत्रडी, सिरु ल्हसिउं खंधस्सु।
तोवि कटारइ हत्थडउ, बलि किज्जउं कन्तस्सु॥8॥

भल्ला हुआ जु मारिआ, बहिणी महारा कन्तु।
लज्जेज्जं तु वयंसिअहु, जइ भग्गा घरु एन्तु॥9॥

ते मुग्गडा हराविया, जे परिविठ्ठा ताहँ।
अवरोप्परु जोअन्ताहं, सामिउ गञ्जिउ जाहँ॥10॥

हिअडा जइ वेरिअ घणा, तो किं अब्भि चडाहुं।
अम्हाहिं बे हत्थडा, जइ पुणु मारि मराहुं॥11॥



जे महु दिण्णा दिअहडा, दइएं पवसन्तेण।
ताण गणन्तिए अड़्गुलिउ-जज्जरियाउ नहेण॥1॥

वायसु उड्डावन्तिअए, पिउ दिट्ठउ सहसत्ति।
अद्धा वलया महिहि गय, अद्धा फुट्ट तडत्ति॥2॥

जइ ससणेही तो मुइअ, अह जीवइ निन्नेह।
बिहिंवि पयारेहिं गइअ धण, किं गज्जहि खल मेह॥3॥

जइ केवँइ पावीसु पिउ, अकिया कुड्ड करीसु।
पाणीउ नवइ सरावि जिवँ, सव्वड़्गे पइसीसु॥4॥

अज्जवि नाहु महुज्जि घर, सिद्धत्था वन्देइ।
ताउं जि विरहु गवक्खेहिं, मक्कडुघुग्घि देइ॥5॥

3

गुणहिं न संपइ कित्ति पर, फल लिहिआ भञ्जन्ति।
केसरि न लहइ बोडिडअवि, गय लक्खेहिं घेप्पन्ति॥1॥

जो गुण गोवइ अप्पणा, पयडा करइ परस्सु।
तसु हउं कलिजुगि दुल्लहडो, बलि किज्जउं सुअणस्सु॥2॥

जाम न निवडइ कुंभयडि, सही चवेडचडक्क।
ताम समत्तहँ मयगलइ, पइ पइ वज्जइ ढक्क॥3॥

धवलु विसूरइ सामिअहो, गरुआ भरु पिक्खेवि।
हउं कि न जुत्तउं दुहुं दिसहिं, खण्डइं दोण्णि करेवि॥4॥

जीविउ कासु न वल्लहउं, धणु पुणु कासु न इट्ठु।
दोण्णिवि अवसर निवडिआइं, तिण-सम गणइ विसिट्णु॥5॥

जइ पुच्छइ घर बड्डाइं, तो बड्डा घर ओइ।
विहलिय जण अब्भुद्धरणु, कन्तु कुडीरइ जोइ॥6॥

महु कन्तहो गुट्ठट्ठिअहो, कउ झुम्पडा बलन्ति।
अह रिउ रुहिरें उल्हवइ, अह अप्पणे न भन्ति॥7॥

गयउ सु केसरि पियहु जलु, निच्चिन्तइं हरिणाइं।
जसु केरए हुंकारडएं, मुहहुं पडन्ति तृणाइं॥8॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : हेमचंद्र सूरि ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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